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दीपक ढेंगले… अब मुझे डर नहीं लगता

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by Rizvi Amir Abbas Syed

एक अदृश्य सी डोर है

जो आज मुझे दीपक ढेंगले से जोड़ रही है

उसकी काल कोठरी

उसके क़लम

उसकी कवितायेँ

उसके उज्जवल भारत के सपने

सब देख रहा हूँ

दीपक चमक रहा है

लाख कोशिशों के बाद भी

सरकार इस दीपक की टिमटिमाती लौ से

मात खाती चली जा रही है

अंधकार का अजगर इसकी लौ को निगल नहीं पा रहा है

हाँ दीपक स्वाधीनता के गीत गा रहा

युगों युगों से जिन पैरों पर ब्रह्मा का अस्तित्व खड़ा था

वो डगमगाने लगा है

अब दीपक स्वयं की ज्योति को पहचानने लगा है

अदृश्य डोर से हिम्मत बांधने लगा है

अपनी हिम्मत, मेरी हिम्मत

हम सब की हिम्मत

अब तन-रुपी पहनावा

या नक्सलवाद का झूठा इलज़ाम कोई अस्तित्व नहीं रखता

मैं सत्य पर हूँ

अब मुझे डर नहीं लगता

 

Listen to song penned by Deepak Dengle, sung by Sagar Gorkhe -झोपड़ पट्टी रे

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Kabir Kala Manch Members, have been born and bought up in slums, and this song reverberates their experience and understanding on the issue of  labour, poverty and politics.

Poet- Deepak Dengle

Singer- Sagar Gorkhe

झोपड़ पट्टी रे -२
हे अँगरेज़ आया मशीन लाया
मिल बनाया –झोपड़ पट्टी
चमार, गुनकर ,लोहार ,मेह्कार
सब समाया — झोपड़  पट्टी

सारी  दुनिया को ऊंचा उठा के
मजदूर रह लिया —झोपड़  पट्टी

झोपड़ पट्टी रे -२
बाम्बू , चटाई ,पत्र ,लकड़ी ,ऊपर प्लास्टिक
बन गयी झोपड़ी
रेलवे लाइन , बाजू  में वाइन
कैसे भी तो ढक गयी खोपड़ी
अपनी भाषा , कल्चर बनईके
बढ़ती  चल रही ,– झोपड़  पट्टी
झोपड़ पट्टी रे -२

सब है  दादा , सब है  भाई
लफड़ा, झगडा , यह मार कुटाई
दारू, गांजा , पनी मास्टर
भूखे बच्चे , रोती लुघाई
घर घर मान्य देसी शहर में
डूबती चल रही झोपड़ पट्टी

कामगार और किसानों के दम पर
आज़ादी के उड़े कबूतर
वोह राजा  के आया  काला
टूटा वोह सपनों का मंज़र
पांच  सालों में चुना लगा गए
देखती रह गयी झोपड़ पट्टी

झोपड़ पट्टी रे -२

LISTEN BELOW THE THUNDERING SONG

Kabir Kala Manch members sing a slum dweller song